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इकाई बैंकिंग एवं इसके गुण - दोष

इकाई बैंकिंग
(Unit Banking)

इकाई बैंकिंग बैंकों के संगठन की वह प्रणाली हैं जिसके अन्तर्गत प्रत्येक बैंक का केवल एक ही कार्यालय होता है और कुछ विशेष दशाओं के अतिरिक्त अन्य स्थानों में उसकी शाखाएं नहीं होती। इकाई बैंकिंग के विषय में सेयर्स ने लिखा है “इस प्रणाली के अन्तर्गत बैंक के कार्यकलाप सामान्यतया एक एकाकी कार्यालय तक सीमित कर दिए जाते हैं यद्यपि कुछ को कठोरतापुर्वक सीमित क्षेत्र के भीतर शाखाएं खोलने की अनुमति से दी जाती हैं।”
लाभ (Merits)
इकाई बैंकिंग प्रणाली के निम्नांकित लाभ है -

1.प्रबन्ध में सुविधा - इस बैंकिंग पद्धति के अन्तर्गत बैंक का आकार छोटा होता है जिस कारण उसके प्रबन्ध, निरीक्षण एवं संचालन में सुविधा रहती हैं तथा प्रबन्ध में होने वाले अपव्यय भी समाप्त हो जाते हैं।

2.अकुशल बैंकों की समाप्ति - यदि कोई बैंक आर्थिक दृष्टि से दुर्बल और अकुशल हैं, तो वह जीवित नहीं रह सकता। कुछ समय बाद वह स्वतः समाप्त हो जाता है तथा बैंकिंग प्रणाली पर बोझ नहीं बनने पाते।

3.एकाधिकार के निर्माण पर रोक - बैंक छोटे - छोटे और स्थानीय होते हैं जिस कारण इस प्रणाली में एकाधिकार संस्थाओं के उत्पन्न होने का भय नहीं रहता।

4.बैंको की कर्कुशलता में वृद्धि - बैंक को अपने महत्वपूर्ण कार्यों के लिए किसी मुख्यालय के आदेशों की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती। वह अपना निर्णय स्वयं लेता है। इससे कार्य समय पर होते रहते हैं और विलम्ब नहीं होता।

5.पहल शक्ति - बैंक अधिकारी स्थानीय दशाओं से भली - भांति परिचित होते हैं। अतएव बैंकिंग व्यवस्था लोचपुर्ण बन जाती हैं।

6.स्वतंत्र व्यवसाय के अनुकूल - इकाई बैंक प्रायः निजी साहस द्वारा संचालित होते हैं। इनके कार्य संचालन में निजी क्षेत्र को अपनी प्रतिभा दिखाने का समुचित अवसर मिलता है।

7.स्थानीय आवश्यकताओं पर आधारित - इकाई बैंकिंग में स्थानीय आवश्यकताओं को महत्व दिया जाता है और इनमे परिवर्तन होने पर बैंक अपनी रीति - नीति को बदल लेते हैं। इससे स्थानीय आवश्यकताएं समुचित रूप से पूरी होती रहती हैं।

दोष(Demerits)

इकाई बैंकिंग भी, शाखा बैंकिंग के समान निर्दोष नहीं हैं। इसमें निम्नांकित दोष देखे जाते हैं।

1.श्रम - विभाजन एवं विशिष्टीकरण सम्भव नहीं - इकाई बैंको का आकार छोटा होने और उनके आर्थिक सठन सीमित रहने के कारण उनमें समुचित श्रम - विभाजन करने एवं विशिष्टीकरण को अपनाने का अवसर नहीं मिलता।

2.जोखिम का भौगोलिक वितरण नहीं - इकाई बैंक केवल एक ही स्थान पर स्थापित होता है। वहीं उसके सम्पूर्ण कार्यकलाप केंद्रित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में यदि उस स्थान पर व्यापारिक मंडी आ जाए अथवा अन्य कठिनाईयां उत्पन्न हो जाए, तो बैंको के विफल होने का भय बना रहता है।

3.पूंजी के स्थानांतरण पर अधिक व्यय - इकाई बैंक की अन्य स्थानों में निजी शाखाएं नहीं होती, अतः पूंजी के स्थानांतरण के लिए उसे प्रतिनिधि बैंकों की आवश्यकता पड़ती है। ये भी अपना कमिशन प्राप्त करते हैं। इससे एक स्थान से दूसरे स्थान को पूंजी भेजना महंगा और असुविधाजनक होता है।

4.ब्याज दरों में भिन्नता - पूंजी का स्थानांतरण महंगा और असुविधाजनक होने का ही दुष्परिणाम होता हैं कि विभिन्न क्षेत्रों में ब्याज दरें असमान रहने लगती हैं। औद्योगिक एवं व्यावसायिक केंद्रों में ब्याज दर नीची देखी जाती हैं। किन्तु पिछड़े एवं कम विकास वाले क्षेत्रों में ऊंची दर प्रचलित होती है। इनसे इन क्षेत्रों के विकास में बाधा पड़ती हैं।

5.छोटे - छोटे नगरों और कस्बों में बैंकिंग सुविधाएं विकसित न होना - जब एक ओर शाखा बैंक हानि उठाकर भी छोटे - छोटे नगरों और कस्बों में अपनी शाखाएं खोल सकते हैं वहीं इकाई बैंक छोटे स्थानों में स्थापित होने में कठिनाई अनुभव करते हैं, क्योंकि वहां होने वाली किसी हानि की पूर्ति करने उन्हें कोई अवसर नहीं मिलता। इसका मुख्य कारण यह हैं की उनके आर्थिक साधन भी सीमित होते हैं।

6.आर्थिक संकटों का सामना करने में कठिनाई - अपने छोटे आकार और सीमित आर्थिक साधनों के कारण इकाई बैंक आर्थिक संकटों का सामना नहीं कर पाते। इसका परिणाम यह होता है कि मंडी के दौरान अमेरिका में सैकड़ों बैंक फैल हो गए थे।

7.सरकारी नियंत्रण में असुविधा - इकाई बैंकिंग के अन्तर्गत सरकार को अनेक छोटे - छोटे बैंको से व्यवहार करना पड़ता है। प्रत्येक बैंक का पृथक - पृथक निरीक्षण करना व  पृथक - पृथक नियमन रखना उं पर अत्यंत कठिन व खर्चीला कार्य होता है।

8.बैंकिंग कुशलता में कमी -सीमित साधनों वाले और छोटे आकार के बैंक बैंकिंग की नवीनतम कार्य विधियों एवं यंत्रों का उपयोग नहीं कर पाते जिससे बैंकिंग सेवा का स्तर नीचा बना रहता है। नवीन संरचनात्मक परिवर्तन करना छोटी इकाइयों में सम्भव नहीं हो पाता है जिससे बैंकिंग की आधुनिकतम सुविधाएं प्राप्त नहीं हो पाती हैं।

इकाई बैंकिंग के दोषों का उपचार 

अमेरिका व अन्य देशों में जहां, इकाई बैंकिंग प्रणाली प्रचलित हैं, इसके उपर्युक्त दोषों को दूर करने हेतु कुछ उपाय किए गए हैं जोकि संक्षेप में निम्नांकित हैं

1.सीमित शाखाएं खोलने का अधिकार - अमेरिका में कुछ बंको को अपने निकटवर्ती क्षेत्र में शाखाएं खोलने का अधिकार दिया गया है ताकि वे अपने व्यवसाय बढ़ाकर पर्याप्त लाभ अर्जित कर सकें।

2.प्रतिनिधि बैंको की स्थापना - अमेरिका में प्रतिनिधि बैंको की स्थापना को प्रोत्साहन दिया गया है ताकि ये छोटे - छोटे इकाई बैंकों के अतिरिक्त कोष अपने यहां जमा करे, उनको परामर्श दे, उनको पूंजी के स्थानांतरण में सहायता से और आवश्यकता पड़ने पर ऋण भी दें। जिस प्रकार मला के मनके एक डोरी में पिरोये होने पर अधिक लाभप्रद बन जाते हैं, उसी प्रकार प्रतिनिधि बैंकों के द्वारा देश के विभिन्न इकाई बैंक आपस में जुड़ जाते हैं और अधिक कुशल सेवा प्रदान करने लगते हैं, किन्तु उनका अस्तित्व पृथक ही बना रहता है।

3.श्रृंखला एवं समूह बैंकिंग को बढ़ावा - अमेरिका में श्रृंखला बैंकिंग और समूह बैंकिंग के विकाश को प्रोत्साहन दिया गया है। श्रृंखला बैंकिंग के अंतर्गत दो या अधिक बैंकों प्र एक ही ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। इस प्रकार इकाई बैंकिंग के साथ - साथ शाखा बैंकिंग के लाभ भी प्राप्त होने लगते हैं। उसका कारण यह हैं कि यद्यपि बैंक अलग - अलग होते हैं तथापि स्वामित्व की एकता होने से उनकी नीतियों का समन्वय करना सुगम हो जाता है

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