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एक श्रेष्ठ बैंकिंग प्रणाली के लक्षण

बैंको के महत्व के उपर्युक्त विवेचन के संदर्भ में यह समझना स्वाभाविक है कि देश की बैंकिंग प्रणाली बहुत अच्छी होनी चाहिए। यदि बैंकिंग प्रणाली दोषपूर्ण अथवा दुर्बल हैं, तो देश के आर्थिक विकास में बढ़ाएं उत्पन्न होंगी। यहां यह प्रश्न उठता है कि एक अच्छी बैंकिंग प्रणाली में क्या विशेषताएं या गुण होने चाहिए। एक अच्छी बैंकिंग प्रणाली में निम्न विशेषताएं होनी आवश्यक है - 


1. बचतों को प्रोत्साहन - बैंकिंग प्रणाली ऐसी होनी चाहिए कि सभी वर्गो द्वारा बचत को प्रोत्साहन मिले और विभिन्न प्रकार के खातों द्वारा उनको एकत्र करके निवेश हेतु प्रयोग किया जा सके।

2.देश की परिस्थितियों के अनुरूप- किसी बैंकिंग प्रणाली को देश में मात्र इसीलिए अपनाना उपयुक्त नहीं होता की वह अन्य देशों में प्रचलित हैं। कारण, प्रत्येक देश की परिस्थितियां अलग - अलग होती है जिससे एकसमान बैंकिंग प्रणाली ठीक नहीं हो सकती है। उदाहरणार्थ, कोई देश कृषि - प्रधान हैं (जैसे कि भारत) तो कोई देश उद्योग प्रधान (जैसे कि इंग्लैंड)। यदि बैंकिंग प्रणाली देश विशेष की आवश्यकताओं के अनुरूप है, टोवाह आर्थिक विकास में सहायक बनेगी अन्यथा नहीं।

3.साख पर उचित नियंत्रण - साख निःसंदेह व्यापार की एक आधारभूत आवश्यकता है। इसका विस्तार होना चाहिए, परन्तु कोई भी व्यक्ति इसके असीमित विस्तार का समर्थन नहीं करेगा, क्योंकि अनियंत्रित होने पर साख वरदान न रहकर अभिशाप बन जाती है। अतः एक श्रेष्ठ बैंकिंग प्रणाली की यह भी विशेषता होनी चाहिए कि वह साख के विस्तार पर उचित नियंत्रण रख सके ताकि विकास के साथ - साथ स्वामित्व का लक्ष्य पूरा हो सके।

4.समन्वय पूर्ण होना - वहीं बैंकिंग प्रणाली श्रेष्ठ मनी जाएगी जिसके अन्तर्गत विभिन्न बैंकों में अनावश्यक और अस्वस्थ प्रतियोगिता न हो वरन् उसके कार्यकलापों में समुचित समन्वय रहता हो। ऐसा नहीं होना चाहिए कि कहीं तो बैंकिंग सुविधाओं की अधिकता है और कहीं उनकी घोर कमी।

आर्थिक उदारीकरण नीति में बैंको की भूमिका

सार्वजनिक तथा निजी दोनों क्षेत्रों ने नई आर्थिक उदारीकरण नीति को सफल बनाने के लिए कई प्रकार से योगदान किया हैं। यह योगदान निम्न प्रकार हैं-

1.बैंक की शाखाओं तथा सुविधाओं में काफी वृद्धि होती है। 1 अप्रैल, 2017 को सभी प्रकार के अनुसूचित बैंकों (सरकारी एवं निजी) की संख्या 1,41,729 थी। 

2.बैंको की जमा राशि में वृद्धि हुई। 18 मार्च, 2016 को अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की समग्र जमाए 96,307.79 अरब हो गई। 

3.बैंको द्वारा दिए गए ऋणों में वृद्धि हुई। 18 मार्च, 2016 को अनुसूचित बैंको की सागर उधारी 74,998.63 अरब करोड़ थी। 

4.विभिन्न बैंकों की स्थापना की गई -
(A) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (1975 से)
(B) आयात - निर्यात बैंक (1982 से)
(C) राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण बैंक (1982 से)
(D) राष्ट्रीय आवास बैंक (1987 से)

5.राष्ट्रीयकरण के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा प्राथमिक क्षेत्र को ऋण प्रदान किए गए हैं। 

6.राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों से पूंजीपतियों का अधिकार समाप्त हो गया इसलिए आर्थिक सत्ता के संकेद्रण की समाप्ति हुई। 

7.राष्ट्रीयकरण के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में बैंको की शाखाओं में अधिक वृद्धि हुई। 

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