प्रबन्ध- अर्थ एवं परिभाषाएं
Management: Meaning and Definations)
उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक साधनों के समुचित एवं कुशलतम उपयोग से व्यवसाय के निर्दिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति ही प्रबन्ध है। व्यवसाय के सफल संचालन के लिए भूमि, श्रम, कच्चा माल, मशीनें एवं पूंजी की आवश्यकता होती हैं । ये सभी साधन प्रत्येक व्यवसाय के लिए आवश्यक है । इन सभी साधनों का अनुचित उपयोग या किसी साधन की अधिकता और दूसरे की कमी के कारण व्यवसाय असफल हो सकता है । इसके विपरित, व्यवसाय के लक्ष्य को ध्यान में रखकर उपयुक्त, योग्य, प्रशिक्षित एवं अनुभवी कर्मचारियों का चुनाव, उपयुक्त कच्चा माल, मशीनों एवं पूंजी के उपयोग से व्यवसाय को सफल बनाया जा सकता है । इस प्रकार व्यावसायिक संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए व्यवसाय के साधनों का कुशल नियोजन, संगठन, निर्देशन एवं समन्वय ही प्रबन्ध हैं ।
Manegmenet |
प्रबन्ध की परिभाषाएं (Defination of Management)
1. “विस्तृत रुप से प्रबन्ध उस कला को कहते हैं जिसके द्वारा किसी उद्यम में मनुष्यों और माल को नियंत्रित करने के लिए जो आर्थिक सिद्धांत लागू होते हैं, उन्हें प्रयोग में लाया जाता है ।”
2. कुण्ट्ज तथा ओ’डोनेल के शब्दों में,“प्रबन्ध का कार्य अन्य व्यक्तियों द्वारा तथा उनके साथ मिलकर काम करना हैं ।”
3.हेनरी फेयोल का कथन हैं,“प्रबन्ध का अर्थ पूर्वानुमान लगाना, योजना बनाना, संगठन करना, निर्देश देना, समन्वय करना और नियंत्रण करना हैं। ”
4.लारेंस ए. एप्पले का कथन है कि - प्रबन्ध व्यक्तियों के विकाश से संबंधित हैं न की वस्तुओं के निर्देशन से।”
5. सी. डब्ल्यू. विल्सन के अनुसार - “निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु मानवीय शक्ति का प्रयोग एवं निर्देशित करने की विधि प्रबन्ध कहलाती है।”
व्यवसाय प्रबन्ध - अर्थ एवं परिभाषाएं
(Business Management: Meaning and Definations)
व्यवसाय और प्रबन्ध शब्दों का अर्थ स्पष्ट हो जाने के बाद व्यवसाय प्रबन्ध का अर्थ समझना अत्यंत आसान हैं। वास्तव में,“व्यवसाय के विभिन्न अंगों में प्रभावपूर्ण सहकारिता स्थापित करने की कला का नाम ही व्यवसाय प्रबन्ध हैं।
दूसरे शब्दों में, व्यवसाय प्रबन्ध से हमारा आशय में संलग्न कर्मचारियों के कार्यों को इस प्रकार से नियोजित, संगठित, नियंत्रित, अभिप्रेरित एवं समन्वित करने से हैं ताकि व्यवसाय के लक्ष्यों को न्यूनतम लागत एवं अधिकतम कुशलता के साथ पूरा किया जा सके । व्यवसाय को निश्चित योजना के अनुसार सुव्यवस्थित ढंग से चलाना जिससे न्यूनतम व्यय पर अधिकतम परिणाम प्राप्ति किया का सके, ही व्यवसाय प्रबन्ध है ।
जार्ज आर. टैरी के अनुसार, “ व्यवसाय प्रबंध वह क्रिया हैं जो मनुष्य, सामग्री, यंत्रों, विधियों, मुद्रा एवं बाजारों के आधारभूत तत्वों के कार्य - कलापों के मानवीय प्रयासों को निर्देशित, समन्वय एवं नेतृत्व प्रदान करते हुए नियोजन, संगठन एवं नियंत्रण करती हैं ताकि व्यावसायिक उपक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त किया का सके ।”
प्रबन्ध की विशेषताएं( Features of management)
प्रबन्ध की परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है की इसकी निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएं हैं -
1.उद्देश्य निर्धारण - प्रबन्ध का उद्देश्य सामग्री, श्रम, मशीन, भूमि, समाज एवं सरकार को अपने हित में अधिक से अधिक उपयोग करके पर्याप्त उत्पादन करना और उत्पादित माल की बिक्री द्वारा अधिकाधिक लाभ कमाना होता हैं ।
2.प्रबन्ध अधिकारियों की श्रंखला हैं - एक संगठन प्रबन्ध के विभिन्न स्तर पाए जाते हैं। प्रत्येक निम्न स्तर उच्च स्तर से अधिकार प्राप्ति करता हैं एवं उसके प्रति जवाबदेह होता है। परिणामस्वरूप प्रबन्ध का एक ढांचा तैयार हो जाता है ।
3.प्रबन्ध एक सतत् क्रिया हैं - व्यवसाय में निरंतर समस्यायों का समाधान एवं सुधार करने की आवश्यकता रहती हैं, इसी कारण प्रबन्ध को एक सतत् क्रिया कहा जाता है । व्यावसायिक इकाइयों के आकार तथा परिस्थितियों की गतिशीलता के कारण यह क्रिया निरंतर जटिल होती जा रही है ।
4.मानवीय प्रयासों से संबंधित - प्रबन्ध मानवीय क्रियाओं से संबंधित होता है ।प्रबन्ध मानवीय क्रियाओं के नियोजन, संगठन, निर्देशन, समन्वयन एवं नियंत्रण के द्वारा ही उपक्रम के निष्क्रिय साधनों को गतिशील बनता है।
5.प्रबन्ध एक सामूहिक क्रिया हैं - प्रबन्ध एक सामूहिक क्रिया हैं। यह स्वयं कार्य नहीं करता अपितु इसका कार्य अन्य व्यक्तियों के द्वारा कार्य को संपादित कराना होता है।
6.विवेकपूर्ण प्रक्रिया - प्रबन्ध केवल मानवीय प्रयासों व लक्ष्यों को प्राप्ति की दशा में लगाना ही नहीं, अपितु संभावित लागत, श्रम एवं त्याग के द्वारा उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करना हैं ।दूसरे शब्दों में, प्रबन्ध एक विवेकपूर्ण प्रक्रिया हैं ।
7.सार्वभौमिक प्रक्रिया - प्रबन्ध की किया सभी संस्थाओं में चाहे वह व्यापारिक संस्था हो या सामाजिक, राजनैतिक हो या धार्मिक, समान रूप से संपन्न की जाती हैं। कोई भी संस्था जिसका लक्ष्य सामूहिक प्रयासों में प्राप्त हो, उसे अनिवार्य रूप से अपनी क्रियाओं का नियोजन, संगठन, निर्देशन एवं नियंत्रण करना पड़ता है ।
8.आर्थिक साधन या उत्पादन का एक घटक - प्रबन्ध भी पूंजी, श्रम, भूमि, साहस के समान ही आर्थिक साधन या उत्पादन का एक घटक हैं। कुशल प्रबंध के अभाव में किसी देश का आर्थिक विकास पिछड़ सकता है ।
9.प्रबन्ध कला एवं विज्ञान दोनों हैं - प्रबन्ध कला भी हैं और विज्ञान भी, क्योंकि इसके वैज्ञानिक एवं कलात्मक रूपों को अलग नहीं किया जा सकता। कला के रूप में प्रबन्ध में व्यावहारिक ज्ञान, निपुणता, रचनात्मक उद्देश्य एवं अभ्यास द्वारा विकास आदि विशेषताएं है और विज्ञान के रूप में कारण और परिणाम का संबंध, नियमो का परीक्षण, योग्यता व परिणामों का पूर्वानुमान आदि विशेषताएं है ।अतः प्रबन्ध कला और विज्ञान दोनों है।
10.प्रबन्ध एक सामाजिक क्रिया हैं - प्रबन्ध का मुख्य रूप से संबंध व्यवसाय के मानवीय पक्ष से होता है ।संस्था के सभी कर्मचारी समाज के है अंग होते हैं । अतः इनका नेतृत्व व निर्देशन सामाजिक क्रिया का ही अंग हैं । वर्तमान में व्यवसाय ने भी अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को स्वीकार कर लिया है ।
प्रबन्ध की विशेषताएं( Features of management)
1.उद्देश्य निर्धारण - प्रबन्ध का उद्देश्य सामग्री, श्रम, मशीन, भूमि, समाज एवं सरकार को अपने हित में अधिक से अधिक उपयोग करके पर्याप्त उत्पादन करना और उत्पादित माल की बिक्री द्वारा अधिकाधिक लाभ कमाना होता हैं ।
2.प्रबन्ध अधिकारियों की श्रंखला हैं - एक संगठन प्रबन्ध के विभिन्न स्तर पाए जाते हैं। प्रत्येक निम्न स्तर उच्च स्तर से अधिकार प्राप्ति करता हैं एवं उसके प्रति जवाबदेह होता है। परिणामस्वरूप प्रबन्ध का एक ढांचा तैयार हो जाता है ।
3.प्रबन्ध एक सतत् क्रिया हैं - व्यवसाय में निरंतर समस्यायों का समाधान एवं सुधार करने की आवश्यकता रहती हैं, इसी कारण प्रबन्ध को एक सतत् क्रिया कहा जाता है । व्यावसायिक इकाइयों के आकार तथा परिस्थितियों की गतिशीलता के कारण यह क्रिया निरंतर जटिल होती जा रही है ।
4.मानवीय प्रयासों से संबंधित - प्रबन्ध मानवीय क्रियाओं से संबंधित होता है ।प्रबन्ध मानवीय क्रियाओं के नियोजन, संगठन, निर्देशन, समन्वयन एवं नियंत्रण के द्वारा ही उपक्रम के निष्क्रिय साधनों को गतिशील बनता है।
5.प्रबन्ध एक सामूहिक क्रिया हैं - प्रबन्ध एक सामूहिक क्रिया हैं। यह स्वयं कार्य नहीं करता अपितु इसका कार्य अन्य व्यक्तियों के द्वारा कार्य को संपादित कराना होता है।
6.विवेकपूर्ण प्रक्रिया - प्रबन्ध केवल मानवीय प्रयासों व लक्ष्यों को प्राप्ति की दशा में लगाना ही नहीं, अपितु संभावित लागत, श्रम एवं त्याग के द्वारा उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करना हैं ।दूसरे शब्दों में, प्रबन्ध एक विवेकपूर्ण प्रक्रिया हैं ।
7.सार्वभौमिक प्रक्रिया - प्रबन्ध की किया सभी संस्थाओं में चाहे वह व्यापारिक संस्था हो या सामाजिक, राजनैतिक हो या धार्मिक, समान रूप से संपन्न की जाती हैं। कोई भी संस्था जिसका लक्ष्य सामूहिक प्रयासों में प्राप्त हो, उसे अनिवार्य रूप से अपनी क्रियाओं का नियोजन, संगठन, निर्देशन एवं नियंत्रण करना पड़ता है ।
8.आर्थिक साधन या उत्पादन का एक घटक - प्रबन्ध भी पूंजी, श्रम, भूमि, साहस के समान ही आर्थिक साधन या उत्पादन का एक घटक हैं। कुशल प्रबंध के अभाव में किसी देश का आर्थिक विकास पिछड़ सकता है ।
9.प्रबन्ध कला एवं विज्ञान दोनों हैं - प्रबन्ध कला भी हैं और विज्ञान भी, क्योंकि इसके वैज्ञानिक एवं कलात्मक रूपों को अलग नहीं किया जा सकता। कला के रूप में प्रबन्ध में व्यावहारिक ज्ञान, निपुणता, रचनात्मक उद्देश्य एवं अभ्यास द्वारा विकास आदि विशेषताएं है और विज्ञान के रूप में कारण और परिणाम का संबंध, नियमो का परीक्षण, योग्यता व परिणामों का पूर्वानुमान आदि विशेषताएं है ।अतः प्रबन्ध कला और विज्ञान दोनों है।
10.प्रबन्ध एक सामाजिक क्रिया हैं - प्रबन्ध का मुख्य रूप से संबंध व्यवसाय के मानवीय पक्ष से होता है ।संस्था के सभी कर्मचारी समाज के है अंग होते हैं । अतः इनका नेतृत्व व निर्देशन सामाजिक क्रिया का ही अंग हैं । वर्तमान में व्यवसाय ने भी अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को स्वीकार कर लिया है ।
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